द्वापर युग में कुरुछेत्र में श्री कृष्ण के गीता का ज्ञान मानवता के लिए अमूल्य निधि है।यह जानकार आपको गर्व होगा कि कुरुछेत्र के बाद समूचे विश्व में गीता ज्ञान को फैलाने का कारक भी प्रयागराज ही रहा ।इस्कान के संस्थापक श्री प्रभूपाद को गीता ज्ञान को विश्व जनमानस तक पहुंचाने का प्रेरणा यही से मिला ।
श्री प्रभूपाद का जन्म कलकत्ता में हुआ और असली नाम अभयचरण डे था । जो साउथ मलाका मे किराए पर रूपगौड़िए मठ के पास रहते हुए जान्संगंज के स्वामी विवेकानंद रोड (पहले हेवेट रोड ) के इलाहाबाद डिस्ट्रिक्ट cooperative बैंक वाली मकान में दवाई की एजेंसी चलते थे ।
मलाका के रूपगौड़िए मठ के संत श्रील भक्ति सिद्धांत सरस्वती से 1932 में गीता ज्ञान की दीक्षा ली फिर भक्ति वेदान्त की डिग्री लेने के बाद वे अभयचरण डे से अभयचरणविन्द दास फिर भक्तिवेदांत स्वामी प्रभूपाद बन गए और 1936 में कलकत्ता चले गए और ISKON की स्थापना कर गीता का मर्म विश्व जनमानस तक फैलाये ।